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मानसरोवर भाग - 4

Smriti Ka Pujari (स्मृति का पूजारी) - Munshi Premchand

महाशय होरीलाल की पत्नी का जब से देहान्त हुआ वह एक तरह से दुनिया से विरक्त हो गये हैं। यों रोज कचहरी जाते हैं अब भी उनकी वकालत बुरी नहीं है। मित्रों स…

Mange Ki Ghadi (मांगे की घड़ी) - Munshi Premchand

1 मेरी समझ में आज तक यह बात न आयी की लोग ससुराल जाते हैं, तो इतना ठाट-बाट क्यों बनाते हैं । आखिर इसका उद्देश्य क्या होता है ? हम अगर लखपती तो क्या, औ…

Do Sakhiyan (दो सखियां) - Munshi Premchand

1 लखनऊ 1-7-25

विषम समस्या (Visham Samasya) - मुंशी प्रेमचंद

विषम समस्या : मुंशी प्रेमचंद

सभ्यता का रहस्य (Sabhyata Ka Rahasya) - मुंशी प्रेमचंद

सभ्यता का रहस्य : मुंशी प्रेमचंद यों तो मेरी समझ में दुनिया की एक हजार एक बातें नहीं आती—जैसे लोग प्रात:काल उठते ही बालों पर छुरा क्यों चलाते हैं ? क…

सवा सेर गेहूं (Sawa Ser Gehun) - मुंशी प्रेमचंद

सवा सेर गेहूँ : मुंशी प्रेमचंद किसी गाँव में शंकर नाम का एक कुरमी किसान रहता था। सीधा-सादा गरीब आदमी था, अपने काम-से-काम, न किसी के लेने में, न किसी …

भूत (Bhoot) - मुंशी प्रेमचंद

भूत : मुंशी प्रेमचंद मुरादाबाद के पंडित सीतानाथ चौबे गत 30 वर्षों से वहाँ के वकीलों के नेता हैं। उनके पिता उन्हें बाल्यावस्था में ही छोड़कर परलोक सिध…

मृतक भोज (Mritak Bhoj): मुंशी प्रेमचन्द

मृतक भोज : मुंशी प्रेमचंद सेठ रामनाथ ने रोग-शय्या पर पड़े-पड़े निराशापूर्ण दृष्टि से अपनी स्त्री सुशीला की ओर देखकर कहा, 'मैं बड़ा अभागा हूँ, शील…
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